भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
के छीन रहल कवर अखियान करऽ / कन्हैया सिंह 'सदय'
Kavita Kosh से
के छीन रहल कवर अखियान करऽ,
अपना अवकात के पहिचान करऽ,
घर फूटले गँवार लूटेला,
ताव में मत कबो कलकान करऽ।
खून सस्ता देवाल महँगा जे
धरम ऊ छोड़ के कल्यान करऽ।
साथ मड़ई के महल ढह जाई,
अपना एटम प, जन अभिमान करऽ।
आग लागी जब आह बढ़ जाई,
जींये के राय द, जन हरान करऽ।
बात बिगड़ेला बतबड़उवल से,
शांति आ प्रेम के एलान करऽ।
कुछ हाथ ना लागी खोंता उजार के,
शक्ति आपन सृजन के दान करऽ।