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के बुझैगा नाथ जी मेरी माया लुटगी / मेहर सिंह

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के बुझैगा नाथ जी मेरी माया लुटगी।टेक

पाणी हिलै था डोल मैं
थी कोयल केसी बोल मैं
थी पन्द्रह सेर की तोल मैं आज पोने दो सेर घटगी।

उठी घटा घनघोर थी
सामण केसी लोर थी
रेशम केसी डोर थी, आज हाथां तै छुटगी।

खाती की लाकड़ी स्याली ओड़
नयन मारे की ना जा खाली ओड़
जंगशाला तै चाली ओड़ बादली जा अटखेड़ा डटगी।

मेहर सिंह का छन्द जड़या हुया
किसै कारीगर का घड़या हुया
गंडासा रेत में पड्या हुया न्यूं सानी की कटगी।