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के बुनलक रेगनी बबूल / रामकृष्ण

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के बुनलक रेंगनी, बबूल
के टँूगे फूल के डली॥
छानी-छानी अँन्हार
कउन ओसौलक सहजे?
तुलसी-चौरा गउरा
बाँटे लागी तरजे।
बरछी-तलवार भेल गाँव
धुआँ हर डगर, नगर, गली॥
रावी, झेलम, सतलुज
बरह्मपूत के पानी,
आग ढ़ो रहल काहे
हवा करइ मनमानी॥
कइसे, के? राह गेल भूल
बेबस कचनार के कली॥
बखरा में ई अकास
बँट सके तऽ बाँट लिह ऽ
माटी नऽ, आपुस के
भेद-भरम छाँट लिहऽ
पुरबइआ पछेआ मुहाल
कर देतो अन्न सब खली॥