के सपने का जिकर बात एक याद जरुरी आगी / कृष्ण चन्द
के सपने का जिकर बात एक याद जरुरी आगी
पुलिस लाईन मैं पड़े पड़े कै याद अंगूरी आगी
सुपने मैं सुसराड़ डिगरग्या मन मैं आन्नद छाया
ताता पानी करवा कै मैं बैठ पाटड़ै न्हाया
फेर छोटा साळा न्यूं बोल्या आ जीजा रोटी खाया
मेरी सासु नै बना रसोई मैं जड़ मैं बैठ जिमाया
जणु थाळी कै म्हां मेरे खाण नै हल्वा पूरी आग़ी
फेर जीजा तैं बतळावण खातिर कठ्ठी होगी साळी
कोए गोरी कोई श्याम वर्ण कोई भूरी कोई काळी
मीठी मीठी बात करैं थी करकै अदा निराळी
घूर घूर कै देखैं थी वे कर कर नजर कुढ़ाली
रुकमण चन्द्रो और शांति झट कस्तूरी आगी
एक जणी नै दई नमस्ते दूजी नै प्रणाम
मटक मटक इतरावैं थी वें करकै जिगर मुलाम
मन का भेद बतादे जीजा खेल कै तमाम
फेर हातह जोड़ कै न्यों बोली कोए म्हारे लायक काम
हो बोल पड़ै नै घरसी के के इसी गरुरी आगी
सुपने कै म्हां तरह तरह के देगे ठाठ दिखाई
साळे साळी कठ्ठे होरे ठोले की लोग लुगाई
आंख खुली जब बैठा होग्या कुछ नाद इया दिखाई
चौगरदें नै लड़धू सोवैं वाहे लाईन पाई
“कृष्ण चन्द” नै सेवा करकै शर्म हजूरी आगी