भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कैनवास में पालिका पार्क / जय छांछा

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्नॉट प्लेस वृत्त के अंदर
सुंदर थाली पर रखे मिष्ठान्न की तरह
बैठा हुआ है पालिका पार्क ।

मंडलाकार में परिणित होकर
मुस्कुराता रहता है क्नॉट प्लेस
और रेखाओं से होकर बहते हैं रंग
वृत्त के अदर हैं अनगिनत वक्र रेखाएँ
और इन्हीं रेखाओं के बीच होकर
दौड रही हैं असंख्य आकृतियों और छाया ।

जगह-जगह फैले बिंदु इसे बनाते हैं सुंदर
और बिंदुओं पर पहुँचकर विश्राम करते हैं कची और ब्रश
और सुंदर कर्मशील औलाह
हरे रंग से पूते हुए कैनवास पर
खुशियों से सराबोर हैं बेगंती सपना बुनने वाले कबूतर
अहा, पिकासो का तैलचित्र जैसा है मनोहर-मनोहर
क्नॉट प्लेस का यह पालिका पार्क ।

पोट्रेटमय पालिका पार्क में
भेलपुरी, गरम समोसा, पापड़
चाय, आलू चिप्स कहते दौड़ती मानव-आकृतियाँ
मेहरून रंग की टोपी पहने मानव-स्वरूप
पोट्रेट के कान की सफ़ाई को दौड़ते हैं यत्र-तत्र
तेल की डिब्बी लिए परछाइयाँ

कतिपय परछाइयों के शरीर पर
धीरे-धीरे मालिश करती दिखती हैं
और बुट पॉलिश और ब्रश उठाए
छोटी-छोटी आकृतियाँ अमूर्त के पैरों पर
सुस्त, सफाई करती दिखती हैं यहाँ ।

आर्ट पैलेस जैसा ही आभास देने वाले
क्नॉट प्लेस की इस भूमि पर
कोलोसियम जैसे ढांचे में बना स्टेटमैन हाऊस
रोम की याद दिला रहा होता है एक तरफ़
और साथ ही ऊँचे-ऊँचे रेस्टोरेंट
कहीं-कहीं सिडनी को प्रतिबिंब में उतार रही होती हैं
और, रहस्यमय अमूर्त चित्रों की सुरक्षा के लिए
तैनात सफ़ेद क्यूरियो के जैसे दो-मंज़िला भवन
दर्शक-दीर्घा पर खडे होकर सौंदर्य के अंदर
कहीं खोए हुए जैसे लगते हैं नंगी आंखों को ।

इन सभी मूर्त-अमूर्त समय, चित्र
और चहल-पहल को चुपचाप देखते हुए
अपनी समझ के अनुसार अनुवाद करने में व्यस्त हूँ इस समय।

मूल नेपाली से अनुवाद : अर्जुन निराला