भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कैन्हें जिद अड़ावै छोॅ / श्रीकान्त व्यास

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कैन्हें हमरा बस्ता केॅ,
गदहा जेनां ढोवावै छोॅ।
बैल जेनां गुरुजी हमरोॅ,
पुट्ठा केॅ फुलवावै छोॅ।

कुत्ता जेनां हांफी-हांफी,
हम्में इस्कूल पहुँचै छी।
गर्दन के झोला केॅ दाग,
मुड़ी-मुड़ी केॅ देखै छी।

कान्होॅ पर के बस्ता के बोझ,
कब्बेॅ हमरोॅ उतरतै।
लागै छै अब गुरुजी हमरोॅ,
जान लैकेॅ ही रहतै।

भूसा जेनां मत ठूसोॅ,
हमरोॅ दिमाग नै बोरा छै।
हम बच्चा दिमागी कच्चा,
भलै दिमाग अभी कोरा छै।

खेल खिलौना कुच्छोॅ नै,
खाली किताब पढ़ावै छोॅ।
अभिये मत पंडित बनावोॅ,
कैन्हें जिद अड़ावै छोॅ।