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कैन्हौं लानोॅ कुच्छु करिहोॅ / गुरेश मोहन घोष

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के कहै छौं तोरा भाय जी,
सीधा औंरी घी निकलै छै?

बदमासोॅ केॅ छोड़ी राखोॅ,
मसंगरा केॅ जोरी राखोॅ-
कोय रातीं कोय भोरे देथौं,
जें नै लैछै हाथ मल छै!

कथीलेॅ तों भूल करै छोॅ?
सीमेंटोॅ सें पूल भरै छोॅ!
कागज के नमरी दौ फेंकी,
उपरै में मौंगरी उछलै छै!

हरका पत्त पीलोॅ होय छै,
तबेॅ कानोॅ पर ढीलोॅ होय छै।
पानी केॅ तों बान्हीं राखोॅ,
सर-सर नगदी रोज चलै छै।

स्कूलै में पढ़ाईये देभौं,
के तोरा संे टीसन पढ़भौं?
घुमनी मारोॅ कुर्सी बैठी,
धीहैं कौंकरी रोज तलै छै।

मतदाता केॅ छेकी राखोॅ,
वोटोॅ सें तों सेंकी राखोॅ-
टेढ़ो हाकिम लच-लच लूबै,
बिन देल्हैं सब भोट मिलै छै।


सासें की बिदागी करबौ?
जैथैं गोड़ोॅ पर गिरिहोॅ।
केन्हौं भानोॅ कुच्छु करिहोॅ,
बिन एकरोॅ की काम चलै छै?