भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कैमरा कैद नहीं कर पाया जिन्हें / नरेश अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कुछ न कुछ छूट रहा था हमसे-
एक जगह जीवन है अपने सघन आकार में
जहाँ वह औरत बैठी है गेहूँ चुनती हुई
पास ही उसका बच्चा है
जमीन में लोटता हुआ
जो उसके पास तक पहुँचना चाहता है
उसकी भूख की तड़प और गेहूँ में कंकड़
माँ का दोनों तरफ ध्यान है
और यह घर है लकड़ी का बना हुआ
एक झील की सतह पर
जिसके किनारे पर कुछ पेड़ हैं
दूर से दिखती है पहाड़ों की श्रेणियाँ
वहाँ से उसका पति आ रहा है
साइकिल में उसकी थकान दिखती है
जोर-जोर से हिलते हुए उसके पाँव
घर में उसका खाना पहले ही तैयार है
हाथ – मुँह धोकर वह खाने बैठा है
औरत का ध्यान सब पर
लेकिन कैमरा कैद नहीं कर पाया इन चीजों को
केवल शब्द ही व्यक्त कर सकते थे इन्हें।