भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कैलू के करनी / अमरेन्द्र
Kavita Kosh से
खैवे पर ध्यान दै
के हेकरा ज्ञान दै
आवै छै घुप सना
बानर ज्यों हुप सना
लुचकै छै लुप सना
पकड़ै छै चुट सना
टूटी जाय पुट सना
घर घुसकै सुट सना
कैलू के करनी
माय भरै भरनी ।