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कैसा डेरा, कैसी बस्ती / राजेंद्र नाथ 'रहबर'
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कैसा डेरा, कैसी बस्ती
हम फिरते हैं बस्ती बस्ती
हर नगरी में घर है अपना
हर बस्ती है अपनी बस्ती
रमते जोगी घूम रहे हैं
नगरी नगरी, बस्ती बस्ती
बस्ती बस्ती फिरने वालो
तुम भी बसा लो कोई बस्ती
अपनी बस्ती में सब कुछ है
क्यों फिरते हो बस्ती बस्ती
तुझ को छोड़ के तुझ को तरसे
हम ऐ जान से प्यारी बस्ती
इक अल्हड़ मुटयार पे यारों
मरती है बस्ती की बस्ती
कोई दूर नहीं बंजारो
अलबेली नारों की बस्ती
पर्वत के उस पार बसायें
हम तुम एक सुहानी बस्ती
दिल का दामन थाम रही है
अन-देखी, अनजानी बस्ती
बस्ती छोड़ के जाने वाले
याद न क्या आयेगी बस्ती
बस्ते बस्ते बस जायेगी
'रहबर` दिल की सूनी बस्ती