भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कैसा निर्मम प्रथम प्रेम यह / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
एक झलक के लिए तरसती हैं दृग कोरें भर-भर आतीं
कैसा निर्मम प्रथम प्रेम यह हर पल प्रिय की याद सताती॥
आँखों में आगत के सपने
पलकों पर गम की बारातें,
शशि करता आता युग-युग से
लहरों के संग भीषण घातें।
घातों के आघात सहन कर के भी उर्मि सदा मुस्काती।
कैसा निर्मम प्रथम प्रेम यह हर पल प्रिय की याद सताती॥
मत्स्य सुता ने मछुआरे के
नैनों से क्या डोरी बाँधी
जागा ज्वार सिंधु में भीषण
उठे अनगिनत झंझा आँधी।
तन मन बिंधा समर्पित है उर सौंप रहा प्रियतम को थाती।
कैसा निर्मम प्रथम प्रेम यह हर पल प्रिय की याद सताती॥