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कैसी मिली है हमको विरासत में ज़िन्दगी / श्याम कश्यप बेचैन
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कैसी मिली है हमको विरासत में ज़िन्दगी
कटती है साँस-साँस हिरासत में ज़िन्दगी
देखें क्या गुल खिलाएगा अब ताज़िराते वक़्त
है कटघरे के बीच, अदालत में ज़िन्दगी
ख़तरे की आहटों से धड़कता रहा ये दिल
हरदम पड़ी रही मेरी साँसत में ज़िन्दगी
फिर भी वही फ़रिश्ते हैं, जिनकी गुज़र गई
शैतान की तरफ से वकालत में ज़िन्दगी
खिड़की से झाँक कर ये लगा, क्यों गुज़ार दी
ख़ुशफ़हमियों की बंद इमारत में ज़िन्दगी