भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कैसी है आज की औरत / हेमा पाण्डेय
Kavita Kosh से
वह समझती है
अपनी परम्पराओं को
आधुनिकता का
भी है उसे ज्ञान
घर में अब भी माँ है
जिस पर पूरा परिवार
रहता है निर्भर
और साथ ही उसने
घर से बाहर
एक नया रूप भी
अख्तियार किया है
जो प्रोफेसनलिज्म में
किसी से कम नही
समय के साथ
बदलती गई है
औरतो की सूरत
गाँव की स्त्री का
नया चेहरा
न रही अबला न
पुजन की औरत
सोशल साइट्स पर
है लड़कियाँ
मुस्लिम महिलाओं का
भी बदला है जीवन
बदली है औरत के
काम की जगह की अब
होती नहीं जुवां
सुंदरता की लिखी
है अब नई व्याख्या
ऐसी है आज की औरत