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कैसे-कैसे लोग शहर में रहते हैं / राकेश जोशी
Kavita Kosh से
कैसे-कैसे लोग शहर में रहते हैं
जलता है जब शहर तो घर में रहते हैं
जाने क्यों इस धरती के इस हिस्से के
अक्सर सारे लोग सफ़र में रहते हैं
भूख से मरते लोगों की इस दुनिया में
राजा-रानी रोज़ ख़बर में रहते हैं
दौर नया है, जिसमें हम सबके सपने
दबकर फाइल में, दफ्तर में रहते हैं
जनता जब मिलकर चलती है सड़कों पर
दरबारों में लोग फ़िकर में रहते हैं
वो जो इक दिन इस दुनिया को बदलेंगे
मेरी बस्ती, गाँव, नगर में रहते हैं