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कैसे-कैसे शोर सुना करते हैं हम / विजय किशोर मानव
Kavita Kosh से
कैसे-कैसे शोर सुना करते हैं हम
ख़ुशियां चारों ओर, सुना करते हैं हम
सूखी धरती प्यासे लोग तड़पते हैं
वन में नाचे मोर, सुना करते हैं हम
जब से आंख खुली केवील अंधियारा है
होने को है भोर, सुना करते हैं हम
कहां जा रहे हैं, कुछ भी मालूम नहीं
आंधी थामे डोर, सुना करते हैं हम
जंगल में है ख़बर बस्तियों से बचना
फैले आदमख़ोर, सुना करते हैं हम
शहर चीख़ पड़ता है नब्ज़ पकड़ते ही
यूं दुखती हर पोर, सुना करते हैं हम