केसे उतार पाए तुम ख्वाबों को ज़मीन पर
बताओ मुझे, मैं सदियों से दुविधा में हूँ
मैंने बहुत लिखा
बहुत गया भी,
बंजर थी जमीं,
पर घुटने रखकर खूब रोया
चीखा, चिल्लाया
हँसी की छांह में
आँसुओं को उगाया भी
पर अनंत छोर की तमाम यात्रायें
अंतहीन ही रही,
मैं पराजित नहीं हुआ
मैंने पूछना शुरू किया
साधुओं से, फकीर, जोगी, सन्यासियों से
और देखो,तुम तक पहुँच ही गया
अब तो कहो
केसे उतार पाए तुम ख्वाबों को ज़मीन पर?