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कैसे उसे भुला दूँ जिसने / गीत गुंजन / रंजना वर्मा

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कैसे उसे भुला दूँ हर पल याद बसी है जिसकी मन में।
कैसे उस से नाता तोड़ूँ जिसने रंग भरा जीवन में॥

कैसे थी बदरंग अमावस
कैसा था अंधड़ का रेला।
चटक चाँदनी बन वह आया
लगा गया सपनों का मेला।

सपने धूल मिले फिर भी है पावन गंध भरी आँगन में।
कैसे उस से नाता तोड़ूँ जिस ने रंग भरा जीवन में॥

पलकें खुली और चंदा ने
जगा दिया कुछ ऐसा जादू।
पल भर में हम और हो गये
मन भावों पर रहा न काबू।

शूल चुभन सी वही चंद्रिका है अहसास बनी तन मन में।
कैसे उससे नाता तोड़ूँ जिस ने रंग भरा जीवन में॥

तितली मंडराती फूलों पर
भँवरे भी हैं गीत सुनाते।
जाने किन यादों में खोकर
नैन अचानक भर भर आते।

बीती हुई कहानी मन को जैसे जकड़ रही बंधन में।
कैसे उस से नाता तोड़ूँ जिस ने रंग भरा जीवन में॥