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कैसे कहूँ दुनिया से तेरी ऊब चला हूँ / कांतिमोहन 'सोज़'
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कैसे कहूँ दुनिया से तेरी ऊब चला हूँ ।
शायद मैं नए ढब से तुझे ढूँढ़ रहा हूँ ।।
कुछ सख़्त सवालात को हल करने चला हूँ
कुछ तल्ख़ जवाबों के दहन खोल रहा हूँ ।
शीरीनिए-अशआर से लबरेज़ हूँ गोया
मैं डाल पे इस दौर की एक आम पका हूँ ।
इस दौर के लोगों को ज़रूरत नहीं मेरी
शायद मैं गए दौर का पैग़ामे-वफ़ा हूँ ।
दुनिया न मुझे देख फ़क़त मेरा जतन देख
लाने को कंवल मैं तेरे कीचड़ में धँसा हूँ ।
वो लोग मेरी तंज़नवाई से खफ़ा हैं
मैं जिनको हँसाने के लिए ख़ुद पे हँसा हूँ ।
गो सोज़ हूँ पुरसोज़ हूँ पुरदर्द हूँ ताहम
इस उम्र में हँसने की अदा सीख रहा हूँ ।।