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कैसे कहें कि याद-ए-यार रात जा चुकी बहुत / हबीब जालिब
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कैसे कहें कि याद-ए-यार रात जा चुकी बहुत
रात भी अपने साथ साथ आँसू बहा चुकी बहुत
चान्द भी है थका-थका तारे भी हैं बुझे-बुझे
तिरे मिलन की आस फिर दीप जला चुकी बहुत
आने लगी है ये सदा दूर नहीं है शहर-ए-गुल
दुनिया हमारी राह में काँटे बिछा चुकी बहुत
खुलने को है क़फ़स का दर पाने को है सुकूँ नज़र
ऐ दिल-ए-ज़ार शाम-ए-ग़म हम को रुला चुकी बहुत
अपनी क़ियादतों में अब ढूँढ़ेंगे लोग मँज़िलें
राहज़नों की रहबरी राह दिखा चुकी बहुत