भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कैसे कहें कि याद-ए-यार रात जा चुकी बहुत / हबीब जालिब

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कैसे कहें कि याद-ए-यार रात जा चुकी बहुत
रात भी अपने साथ साथ आँसू बहा चुकी बहुत

चान्द भी है थका-थका तारे भी हैं बुझे-बुझे
तिरे मिलन की आस फिर दीप जला चुकी बहुत

आने लगी है ये सदा दूर नहीं है शहर-ए-गुल
दुनिया हमारी राह में काँटे बिछा चुकी बहुत

खुलने को है क़फ़स का दर पाने को है सुकूँ नज़र
ऐ दिल-ए-ज़ार शाम-ए-ग़म हम को रुला चुकी बहुत

अपनी क़ियादतों में अब ढूँढ़ेंगे लोग मँज़िलें
राहज़नों की रहबरी राह दिखा चुकी बहुत