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कैसे कह दूँ, जिसे दिल में / तारा सिंह
Kavita Kosh से
कैसे कह दूँ, जिसे दिल में बसाया है, उससे प्यार नहीं है
आँखों में रचाया तो है, मगर इसकी दरकार नहीं है
जिसकी एक झलक पाने को , मेरी आँखें नम रहा करती हैं
मगर उससे मिलने का, मेरे दिल को इन्तज़ार नहीं है
अपना दिल शकुन लुटाकर, किसी का दिल लिया है
मैंने कब कहा कि यह लेन – देन , व्यापार नहीं है
परदेशी नित ख्वाबों में आते हो , रात संग बिताते हो
कैसे कहूँ मेरे पास तुम्हारा कोई समाचार नहीं है
बात-बात पर रूठना, मान जाना तुम्हारा अच्छा लगता है
मगर गलत होगा कि, तुम्हारे रूठने का मुझे जार नहीं है
एक दिल था मेरे पास उसे भी मिनटों में तुमको सौंप दिया
तुमने कैसे कहा, समय रुक गया है, वक्त में रफ्तार नहीं है