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कैसे किसे बताऊँ अब मैं / हनुमानप्रसाद पोद्दार
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कैसे किसे बताऊँ अब मैं अपने मन की अकथ कहानी।
मेरे अन्तर में नित्य समायी मेरी राधा रानी॥
नूतन नित्य ललित लीलाओं का करती उद्भव रस-खानी।
बाहर भी उसका ही मिलता मधुमय स्पर्श सरस सुख-दानी॥