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कैसे तब बँधेगी आस / गुलाब खंडेलवाल
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कैसे तब बँधेगी आस
कलि -कुसुम मुरझा जायेंगे
अलि -दल न गाने पायेंगे
जब अंक में पतझर के खो जायेगा मधुमास
तरु-दीप भी बुझ जायेंगे
तारे न अश्रु बहायेंगे
क्या देख रजनी में करेंगे ज्योति का विश्वास
स्मृति भी न मन में आयेगी
रो आँख भी थक जायेगी
कैसे करूँगा व्यक्त तब अपने ह्रदय की प्यास