भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कैसे तमाम उम्र थकेगा सफ़र नहीं / पूजा श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
कैसे तमाम उम्र थकेगा सफ़र नहीं
मंज़िल को क्या कहेगा तेरी रहगुज़र नहीं
पागल है जां लुटा भी दे वो सिर्फ प्यार में
इसके सिवा करेगा उसे कुछ असर नहीं
वाकिफ़ रहा वो दिल के हर इक मर्ज़ से मेरे
कर सकता है इलाज करेगा मगर नहीं
संगे रकीब के उसे खुश देखकर मुझे
याद आया कह रहे थे तेरे बिन गुज़र नहीं
लगता है और दर्द की दरकार है इन्हें
अशआर हो गए हैं मगर पुरअसर नहीं
आशिक हैं आशिकी है रगों में नहीं लहू
चाहत सुनो सिखाओ हमें बेख़बर नहीं