काल के गाल में
जा रहे हैं हम
एक बड़ा सा दानव-
समय का
भुजा फैलाये, मुख बाये
सर्वभक्षी खींच रहा
अपनी ओर
हम दीन-हीन असहाय
कैसे प्रगतिशील ?
पा न सके पार
कितने आये
चूर्ण हो, चले गये-
समय के साथ
महानायक-खलनायक
कहां है ?
कितनी सरलता से
बतला देता है कोई औकात
कौन है नियामक
जो करता गर्व का मर्दन
अनन्त के आगे
हम रजकण भी नहीं ।