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कैसे मनाऊँ पिउवा, गुन एकउ मेरे नाहीं / शैलेन्द्र

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कैसे मनाऊँ पिउवा, गुन एकउ मेरे नाहीं

आई मिलन की बेला, घबराऊँ मन माहीं


अपने और पराए ड्यौढ़ी तक ही आए

बीच भँवर की नदिया प्रीतम पार बुलाए

तेरे दरस की प्यासी दो अँखियाँ अकुलाईं !


साजन मेरे आए धड़कन बढ़ती जाए

नैना झुकते जाएँ घूंघट ढलता जाए

तुझ से क्यों शरमाए आज तेरी परछाईं !


मैं अनजान पराई, द्वार तिहारे आई

तुमने मुझे अपनाया प्रीत की रीति निभाई

हाय रे ! मन की कलियाँ फिर भी खिल न पाईं !