कैसे मनाती होगी पृथ्वी नया साल / अलकनंदा साने
पृथ्वी को तो पता होगा
वह कब आई अस्तित्व में
और कब डूब जाएगी प्रलय में
कैसा लगता होगा उसे
एक साल बीत जाने पर
थककर चूर हो जाती होगी चल चलकर
या खुश होती होगी
कि पूरा कर ही लिया बिना रुके
एक और चक्कर
या कि माथे का पसीना पौंछती होगी वह
और गिनती होगी
बची हुई उम्र का हिसाब उँगलियों पर
पृथ्वी कब मनाती होगी नया साल
क्रिसमस के बाद
गुड़ी पड़वा पर
पतेति, मुहर्रम, दीपावली पर?
पृथ्वी इंतज़ार करती होगी क्या
जाड़ों में गुनगुनी धूप का
शरद ऋतू में चांदनी का
आखिर में घूमता होगा क्या उसके सामने
पूरा साल
किसी केलिडोस्कोप-सा?
उल्का पिंडों के अलग होने का दुख
सालता होगा क्या अंतिम पलों में?
याद आती होगी क्या कोई
कलकल बहती, सूख गई नदी?
या बंजर हो गई उपजाऊ जमीन
कितनी बार थरथराई थी वह
भूकम्प आने से पहले
यह सोचकर कांपती होगी क्या वह आखिरी दिन?
कितना अजीब लगता होगा उसे
आधे हिस्से के साथ
नया साल मनाना
और आधे हिस्से को वहीँ
पुराने साल में थामे रखना
कैसे मनाती होगी आख़िर
पृथ्वी अपना नया साल!