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कैसे रुप बड़ायो रे नरसींग / निमाड़ी
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♦ रचनाकार: अज्ञात
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कैसे रुप बड़ायो रे नरसींग
(१) ना कोई तुमरा पिता कहावे,
ना कोई जननी माता
खंब फोड़ प्रगट भये हारी
अजरज तेरी माया...
रे नरसींग...
(२) आधा रुप धरे प्रभू नर का,
आधा रे सिंह सुहाये
हिरणाकुष का शिश पकड़ के
नख से फाड़ गीरायो...
रे नरसींग...
(३) गर्जना सुन के देव लोग से,
बृम्हा दिख सब आये
हाथ जोड़ कर बिनती की नी
शान्त रुप करायो...
रे नरसींग...
(४) अन्तर्यामी की महीमा ना जाणे,
वेद सभी बतलाये
हरी नाम को सत्य समझलो
यह परमाण दिखायो...
रे नरसींग.......