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कैसे सोचूँ / मनोज कुमार झा
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यह बीमारी मुझे मारकर दम लेगी
सोचूँ तो बीमारी मेरी दुश्मन नहीं
यह इस बेढंगी देह का एक मजबूत साथी है
यह भूख को मात देने वाली एक सफेद बिल्ली है
बीमारी से मरूँ या भूख से तो
भूख चुनूँगा कि फँसे एक काँटा सरकार के मसूड़े में
बीमारी भी चुन सकता हूँ, मेरे बच्चे लजाएँगे नहीं।