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कैहिनाँ घरऽ में बेटी देलौहऽ / कस्तूरी झा ‘कोकिल’

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धी दामाद केऽ देतें रहभौ
कखनूँ नैं, नैं बोलथौं।
सास-ससुर केऽ कुछ नैं कहथौं
दुःखड़ा यहाँ सुनैथौं।
दुल्हाँ मुँह चमकैथौं हरदम/बेटी सें कहबैथौं।
कहाँ सें आनभेऽ तोंहें जानऽ
मुँह फलैनें रहथौं।
माय केऽ लागी कानथौं-पीटथौं
टिटुवाँ लोंर चुयैथौं।
कैहनाँ घॅरऽ में बेटी देलौहऽ मैया सें सुनबैथौं।
पैर पकड़ी केऽ कानथौं तोरऽ
माया जाल बिछैथौं।
बेटाँ कहथौं खूब लुटाबऽ दे थौं ताल बहुरियाँ।
खाना-पीना खाख सोहैथौं दोनों तरफ मरणइयाँ।

-अंगिका लोक/ अक्तूबर-दिसम्बर, 2007