कै़द-ए-हयात ओ बंद-ए-ग़म / शाज़ तमकनत
आख़िर-ए-शब की उदासी नम फ़ज़ओं का सुकूत
ज़ख्म से महताब के रिसता है किरनों का लहू
दिल की वादी पर है बे-मौसम घटाओं का सुकूत
काश कोई ग़म-गुसार आए मदारातें करे
मोम-बत्ती की पिघलती रौशनी के कर्ब में
दुख भरे नग़्मे सुनाए दुख भरी बातें करे
कोई अफ़्साना किसी टूटी हुई मिज़राब का
फ़स्ल-ए-गुल में राएगाँ अर्ज़-ए-हुनर जाने की बात
सीप के पहलू से मोती के जुदा होने का ज़िक्र
मौज की साहिल से टकरा कर बिखर जाने की बात
दीदा-ए-पुर-ख़ूँ से कासे तक की मंज़िल का बयाँ
ज़िंदगानी में हज़ारों बार मर जाने की बात
अदल-गाह-ए-ख़ैर में पासंग-ए-शर का तजि़्करा
आईना-ख़ाने में ख़ाल-ओ-ख़त से डर जाने की बात
काश कोई ग़म-गुसार आए मदारातें करे
मोम-बत्ती की पिघलती रौशनी के कर्ब में
दुख भरे नग़्मे सुनाए दुख भरी बातें करे