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कै बिधि कँचनगार सिंगार कै दीने बनाय अनूपम रंग के / द्विज
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कै बिधि कँचनगार सिंगार कै दीने बनाय अनूपम रंग के ।
कै कदली उलटी ह्वै विराजत कै करि शुँड दिखात उमँग के ।
ऐसी लसैँ उपमा तिनकी द्विज भाषत है इमि पाय प्रसंग के ।
प्राण प्रिया के सुराजत ये दोऊ जँग किधौँ हैँ निषँग अनँग के ।
द्विज का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।