भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कै भड़ को आइ होलो, यो दल-बल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

कै भड़<ref>वीर</ref> को आइ होलो, यो दल-बल,
कै भड़ की आई होली, या पिंगली पालंकी,
केक सेन्दो बाबा जी, निंद सुनिंद,
ऐ गैन बाबा जी, जनती<ref>बारात</ref> का लोक,
नी सेन्दू बेटी मैं, निन्द सुनिंद।
तेरी जनीत कांद ओगी लौलू!
बरमा जी करला, गणेश की पूजा,
वर तैं लगौलू मंगल पिठाई।

शब्दार्थ
<references/>