भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कै सै हाथी आबै, कै सै लोग / अंगिका लोकगीत

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

प्रस्तुत गीत में बरात के हाथी, बराती और दुलहे के आने, सबको उचित स्थान देने तथा स्वागत-सत्कार करने का उल्लेख है। इसमें राम को सीता जैसी सुलक्षणा बेटी देकर प्रबोधने की बात कही गई है।

कै सै हाथी आबै, कै सै लोग।
कै भैया राम आबै, तिलक लिलार, रामजी के आसन री॥1॥
पाँच सै हाथी आबै, पचास सै लोग।
चार भैया राम आबै, तिलक लिलार, रामजी के आसन री॥2॥
कहाँ लै हाथी राखब, कहाँ लै लोग।
कहाँ लै राम राखब, तिलक लिलार, रामजी के आसन री॥3॥
बगिचबा में हाथी राखब, दुअरहिं लोग।
मड़बाहिं राम राखब, तिलक लिलार, रामजी के आसन री॥4॥
कथि दै<ref>क्या देकर</ref> हाथी समदब<ref>सम्मान करूँगी</ref>, कथि दै लोग।
कथि दै राम समदब, तिलक लिलार, रामजी के आसन री॥5॥
दान दै हाथी समदब, दहेज दै लोग।
सीता दै राम समदब, तिलक लिलार, रामजी के आसन री॥6॥

शब्दार्थ
<references/>