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कॉफी हाउस की शाम / शशि सहगल
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कॉफी हाउस
आज भी वही शाम
चेहरे, वेटर हैं वही।
अनधुले कप
जिन्हें
गीले कपड़े से पोंछ
बेयरा चमका लाया है।
पर अपनी घुटन को
मैं
कैसे पोंछूँ, साफ करूँ
किससे रगड़ूँ
क्षण को तो चमक जाय
या फिर टूट जाये
हमेशा के लिए ही
एक कप की तरह।