भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कॉमरेड-1 / शुभम श्री

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

पूरी शाम समोसों पर टूटे लोग
दबाए पकौड़े, ब्रेड रोल
गटकी चाय पर चाय
और तुमने किया मेस की घण्टी का इन्तज़ार
अट्ठाइस की उम्र में आईना देखती
सूजी हुई आँखें
कुछ सफ़ेद बाल, बीमार पिता और रिश्ते
स्टूडियो की तस्वीर के लिए माँ का पाग़लपन
घर
एक बन्द दरवाज़ा
---
हमारी आँखों में
तुम हँसी हो
एक तनी हुई मुट्ठी
एक जोशीला नारा
एक पोस्टर बदरंग दीवार पर
एक सिलाई उधड़ा कुर्ता
चप्पल के खुले हुए फीते की कील
पॉलीसिस्टिक ओवेरियन सिण्ड्रोम
भी हो तुम चुपके से
---
यूँ ही गुज़रती है ज़िन्दगी
पोलित-ब्यूरो का सपना
महिला-मोर्चे का काम
सेमिनारों में मेनिफ़ेस्टो बेचते
या लाठियाँ खाते सड़कों पर
रिमाण्ड में कभी-कभी
अख़बारों में छपते
पर जो तकिया गीला रह जाता है कमरे में
बदबू भरा
उसे कहाँ दर्ज करें कॉमरेड ?