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कॉल सेण्टर की सोनिया / विजयशंकर चतुर्वेदी

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कॉल सेण्टर की गुफ़ा से निकल रही है सोनिया
मत्तगयन्दी चाल नहीं है
रेशम जैसे बाल नहीं हैं
रात पाली ने हिलाकर रख दिया है उसे उसका झोंटा पकड़कर
पर्स में रखी गोलियाँ और चिल्लर टटोलती हुई
लटपटाते क़दमों से उम्र की सीढ़ियाँ नाप रही है सोनिया ।

भनभनाती इमारत की कई गुफ़ाओं में
उसकी भी है एक गुफ़ा
जहाँ कम्यूटर के बग़ल में रखी पानी की बोतल में
वह सुन सकती है अपनी उखड़ती सांस
और विदेशी नागरिकों को बताती चलती है
कि मैनहट्टन पहुँचने के लिए इस वक़्त पकड़ना चाहिए कौन-सा रूट
कहाँ से छूट चुकी है लन्दन के किंग्स क्रॉस स्टेशन की ट्यूब ट्रेन
क्रेडिट कार्ड के आँकड़े और बैंक ख़ातों में जमा रक़म उभर आती है उसके सामने
फट जाती हैं उसकी आँखें कोरों से कानों तक
लेकिन अपने प्रेमी तक से नहीं करती कभी इसकी चर्चा
निभाती है लिखित-अलिखित उसूल कॉल सेण्टर के ।

वेस्टइण्डीज से हो कॉल तो बोलती है रिचर्ड्स के लहजे में

अमेरिकी से बात कर लेती है जूनियर बुश की टोन में
ब्रिटेनवासी समझते हैं उसे यूरोप की ही लड़की
फिर भी कभी-कभी उसकी पहचान पकड़ में आ ही जाती है
और हिंदुस्तानी बिच होने की गालियाँ खाती है सोनिया ।

लेकिन पलट कर जवाब देना है मना...सख़्त मना
सो ‘यस सर’, ‘नो मैडम’ कह कर मन मसोसती रह जाती है
रूमाल में सुखाती जाती है आँखों से उमड़ता गंगासागर
दिल में घुमड़ते सैलाब पर बाँध लेती है सब्र का बाँध ।

कल ही तो मुझे मिल गई थी फूड कोर्ट में
बात की बात में मैंने बताया —
‘लुट गई इज़्ज़्त एक लड़की की दफ़्तर से लौटते हुए’
पल भर को सहम गई थी सोनिया
छूट गया था उसके हाथ से निवाला
जैसे झपट पड़ा हो कोई भेड़िया उस पर
बताया उसने — ‘कल वाचमैन उसे जाने कैसी-कैसी नज़रों से घूर रहा था ।’
अबसे रखा करेगी पर्स में मिर्ची पॉउडर
कह रही थी सोनिया ।

पगार मिलते ही उमड़ती है उसकी माँ-बाबा से मिलने की उमंग

सुनाना चाहती है दोस्तों को बेघर होने का शोकगीत
लेकिन ‘जो छुट्टी पर गए, वे नौकरी से भी गए’ —
गूँजता रहता है कॉल सेण्टर की फिजाँ में
दीवारों पर चस्पा हैं जाने कितनी ही लड़कियों के मर्सिए !

वैसे तो यह इमारत है बेहद शानदार
गलियारे ऐसे कि खाना खा लो उन्हीं में परोसकर
सड़कें घिरी हुई हैं बाग़-बग़ीचों से
बनावटी झरने झरते रहते हैं कल-कल
लेकिन कॉल सेण्टर के लोग नहीं सुन पाते पक्षियों की आवाज़ें
चमगादड़ लटके मिलते हैं उन्हें गुफ़ाओं में आते-जाते हुए ।

आज टूटकर बिखर जाना चाहती है सोनिया
ताकि सहेज सके ख़ुद को अगली रात पाली के लिए ।