कोई अच्छे शेर सुनाता
मैं भी अपना जी बहलाता
बारिश में फिर कैसे आता
टूट गया है मेरा छाता
सावन तो सूखा ही बीता
भादों तो पानी बरसाता
जिनके सुख-दुख खोटे सिक्के
ऐसों से क्या रिश्ता-नाता
इतनी उलझी-उलझी राहें
किन क़दमों से आता-जाता
साँपों को फिर दूध पिलाया
किस-किस से आख़िर शरमाता
वो देखो जाता है 'रौशन'
शंख फूँकता गाल फुलाता