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कोई अब उम्मीद क्या हो जब तमन्ना कुछ नहीं / भवेश दिलशाद

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कोई अब उम्मीद क्या हो जब तमन्ना कुछ नहीं
सूफ़ियों की सुहबतों में हूँ ये दुनिया कुछ नहीं

चाहता हूँ कुछ कहूँ लेकिन मैं कहता कुछ नहीं
इतना कुछ सबने कहा मतलब तो निकला कुछ नहीं

दिल में इतनी आग है जितनी नहीं सूरज में भी
इतना पानी है इन आँखों में कि दरिया कुछ नहीं

फ़र्क़ क्या पड़ता है कि अमृत मिला किसको कहाँ
ज़हर जब पी ही लिया है तो ये मुद्दा कुछ नहीं

हमख़यालो-हमज़ुबां मिलता कोई तो बोलते
आईना ही था मुक़ाबिल फिर तो बोला कुछ नहीं

लीजिए मत मीरो-ग़ालिब की कड़ी में नाम यूँ
आपकी ज़र्रानवाज़ी है मैं वरना कुछ नहीं