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कोई आज बैठा है नज़रें चुराए / सरवर आलम राज़ ‘सरवर’

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कोई आज बैठा है नज़रें चुराये
तमाशा हो दिल पे जो बिजली गिराये!

उमीदों की दुनिया में गुम हो गया हूँ
ग़म-ए-ज़िन्दगी से कहो लौट जाये!

हयात-ए-फ़सुर्दा को ठुकरा रहा हूँ
कहो दिल से, दुनिया नई इक बसाये

निगाहों की बेताबियाँ ले न डूबें
कहीं राज़-ए-दीवानगी खुल न जाये

वफ़ा क्या, जफ़ा कैसी, क्या आशनाई!
किसी शोख़ ने हैं खिलौने बनाये

ठिकाना नहीं उसका दुनिया में कोई
तिरे ग़म का मारा कहाँ सर छुपाये?

बड़े शौक़ से दास्तां थी सुनाई
वो सुनते रहे, सुन के फिर मुस्कराये!

तसव्वुर की नै-रंगियाँ! अल्लाह, अल्लाह!
वो देखो निगाहें चुराये वो आये

नज़र में ख़ुदा जाने क्या बस गया है?
तसव्वुर में कुछ रक़्स करते हैं साये!

यही सोच कर दिल को "सरवर" संभाला
ज़माने ने किस पर नहीं ज़ुल्म ढाये?