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कोई इन तंग-दहानों से मोहब्बत न करे / 'ज़ौक़'
Kavita Kosh से
कोई इन तंग-दहानों से मोहब्बत न करे
और जो ये तंग करें मुँह से शिकायत न करे
इश्क़ के दाग़ को दिल मोहर-ए-नबूवत समझा
डर है काफ़िर कहीं दावा-ए-नबूवत न करे
है जराहत का मेरी सौदा-ए-अलमास इलाज
फ़ाएदा उस को कभी संग-ए-जराहत न करे
हर क़दम पर मेरे अश्कों से रवाँ है दरया
क्या करे जादा अगर तर्क-ए-रफ़ाक़त न करे
आज तक ख़ूँ से मेरे तर है ज़बान-ए-ख़ंजर
क्या करे जब के तलब कोई शहादत न करे
है ये इन्साँ बड़े उस्ताद का शागिर्द-ए-रशीद
कर सके कौन अगर ये भी ख़िलाफ़त न करे
बिन जले शम्मा के परवाना नहीं जल सकता
क्या बढ़े इश्क़ अगर हुस्न ही सब्क़त न करे
फिर चला मक़तल-ए-उश्शाक़ की जानिब क़ातिल
सर पे बरपा कहीं कुश्तों के क़यामत न करे