भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कोई उसके बराबर हो गया है / विकास शर्मा 'राज़'
Kavita Kosh से
कोई उसके बराबर हो गया है
ये सुनते ही वो पत्थर हो गया है
जुदाई का हमें इम्कान तो था
मगर अब दिन मुक़र्रर हो गया है
सभी हैरत से मुझको तक रहे हैं
ये क्या तहरीर मुझ पर हो गया है
असर है ये हमारी दस्तकों का
जहाँ दीवार थी दर हो गया है
बहुत ख़ुश हूँ उसे बेचैन कर के
हिसाब उससे बराबर हो गया है