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कोई और तो नहीं / आरती मिश्रा
Kavita Kosh से
तुम सौंप दोगी
जिस दिन
उसे अपना सम्मान तक
वह तुम्हारे अन्त:देश की
एक-एक अन्तड़ियाँ
हिला-हिलाकर देखेगा
‘वहाँ कोई और तो नहीं!!’