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कोई और था फिर भी / देवी नागरानी
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तू न था कोई और था फिर भी
याद का सिलसिला चला फिर भी
शहर सारा है जानता फिर भी
राह इक बार पूछता फिर भी
ख़ाली दिल का मकान था फिर भी
कुछ न किसको पता लगा फिर भी
याद की कै़द में परिंदा था
कर दिया है उसे रिहा फिर भी
ज़िंदगी को बहुत संभाला था
कुछ न कुछ टूटता रहा फिर भी
गो परिंदा वो दिल का घायल था
सोच के पर लगा उड़ा फिर भी
तोहमतें तू लगा मगर पहले
फितरतों को समझ ज़रा फिर भी
कर दिया है ख़ुदी से घर खाली
क्यों न ‘देवी’, ख़ुदा रहा फिर भी