कोई और नहीं औरत हूँ मैं / सुमति बूधन
कोई और नहीं औरत हूँ मैं,
एक हृदय हूँ, एक आत्मा हूँ,
भावनाओं से मंजी हुई सूरत हूँ मैं।
कोई और नहीं औरत हूँ मैं ।
सिंदूर के रंग में जो अपनों से दूर हो जाय,
वह दस्तूर हूँ मैं।
खुशियों की दौलत हूँ मैं,
कोई और नहीं औरत हूँ मैं।
आँचल की छोर से जो भगवान को बाँध ले,
वह इबादत हूँ मैं
स्रष्टा के रंगों की रंगत हूँ मैं ।
कोई और नहीं औरत हूँ मैं।
घर-आँगन में जो किलकारियाँ भर दे,
ममता का वह स्वर हूँ मैं।
ज़िन्दगी की जन्नत हूँ मैं
कोई और नहीं औरत हूँ मैं।
जिन्दगी के दर्द को जो मिटा दे,
वह मलहम हूँ मैं।
मर के जो ज़िन्दगी दे दे
वह मौत हूँ मैं
कोई और नहीं औरत हूँ मैं।
दिन –रात के मिलन की बेला हूँ मैं,
ऊषा हूँ मैं,संध्या हूँ मैं।
वक्त की सेज पर बैठी हुई
एक हकीकत हूँ मैं
कोई और नहीं औरत हूँ मैं।