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कोई कवि कालान्तर में / मोहन सगोरिया
Kavita Kosh से
पता नहीं क्यों नींद में लगा वह
जो गोलियों से भरी रिवाल्वर ताने था
निशाने पर ख़ाली हाथ खड़ा आदमी जाग रहा था
वह निर्भीक दिखा
और पहला भयभीत
दूर कविता लिख रहा कोई कवि कालान्तर में
थोड़ा जाग रहा था और थोड़ा सोया था
अन्ततः उसने लिखा पहले आदमी के डर
और दूसरे की निडरता पर।