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कोई किसी के साथ नहीं है / कांतिमोहन 'सोज़'

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कोई किसी के साथ नहीं है ।
हाथ को भी यां हाथ नहीं है।।

आज आए भी तो क्या आए
आज तो कोई बात नहीं है ।

आज भी तुम जीते हम हारे
आज भी बाज़ी मात नहीं है ।

कोई हिन्दू कोई मुसलमां
इश्क़ किसी की ज़ात नहीं है ।

पूूँजी के बाज़ार में प्यारे
प्यार की कुछ औक़ात नहीं है ।

कुछ तो हिजाब<ref>शर्म</ref> ऐ चश्मे-जफ़ाख़ू<ref>ज़ालिम</ref>
धूप खिली है रात नहीं है।

सोज़ का दिल है तोड़ न देना
ये उसकी सौग़ात नहीं है ।

शब्दार्थ
<references/>