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कोई खुश्बू कहीं से आती है / मानोशी

कोई खुश्बू कहीं से आती है
मेरे घर की ज़मीं बुलाती है

ज़िंदगी इक पुरानी आदत है
यूँ तो आदत भी छूट जाती है

जाने क्या-क्या सहा किया हमने
पत्थरों पर शिकन कब आती है
 
आप होते हैं पर नहीं होते
रात यूँ ही गुज़रती जाती है

तज्रिबा है हरेक पल ऐ ’दोस्त’
ज़िंदगी रोज़ आज़माती है