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कोई गैर नहीं है / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'
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दुख दर्दों कर दुर्दम फौंजे, मुस्कानों कर खैर नहीं है ।
फुटपाथों का पीड़ाओं से क्षण भर होता बैर नहीं है ।
तू कर्मो के फूल खिला दे अधिकारों की गंध मिलेगी
यह जीवन का महासमर है यह गुलशन की सैा नहीं है।
मानवता कर मधुर दृष्टि से यदि हम देखें मसनवता को
तो जगती लगती अपनी है लगता कोई गैर नहीं है।
खास नजर से देखी जाये तो इसमें सब कुछ दर्शित है ।
गजल हमारी चैकन्नी है कोई बे सिर पैर नहीं है ।