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कोई चारा नहीं दुआ के सिवा / 'हफ़ीज़' जालंधरी
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कोई चारा नहीं दुआ के सिवा
कोई सुनता नहीं खुदा के सिवा
मुझसे क्या हो सका वफ़ा के सिवा
मुझको मिलता भी क्या सजा के सिवा
दिल सभी कुछ ज़बान पर लाया
इक फ़क़त अर्ज़-ए-मुद्दा के सिवा
बरसर-ए-साहिल-ए-मुकाम यहाँ
कौन उभरा है नाखुदा के सिवा
दोस्तों के ये मुक्हाली साना तीर
कुछ नहीं मेरी ही खता के सिवा
ये "हफीज" आह आह पर आखिर
क्या कहे दोस्तों वाह वाह के सिवा