कोई चिह्न नहीं है / बोधिसत्व
पिता
अब घर में कोई चिह्न नहीं है तुम्हारा
सब धीरे-धीरे मिट गया
कुछ चीज़ों को ले गए महापात्र
कुछ जला दीं गईं
तुम्हारा चश्मा पड़ा रहा तुम्हारे तहखाने में
कई महीने
फिर किसी ने उसे
गंगा में प्रवाहित कर दिया ।
तुम्हारे जूते
तुम्हारी घड़ी
तुम्हारी टोपियाँ सब कहाँ खो गईं जो
खोजने पर भी नहीं मिलतीं।
जब तुम थे
तब घर कैसे भरा था तुम्हारी चीज़ों से
हर तरफ तुम होते या तुम्हारी चीज़ें होतीं....
कितने तो गमछे थे तुम्हारे
कितने कुर्ते
कितनी चुनदानियाँ
कितने सरौते...
पर खोजता हूँ तो कुछ भी नहीं मिलता घर में कहीं
जैसे किसी साजिश के तहत तुम्हारी चीज़ों को
मिटा दिया गया हो।
ले दे कर बस एक चीज़ बची है
जो लोगों को दिलाती है तुम्हारी याद
वो मैं हूँ... तुम्हारा
सबसे छोटा बेटा।
पता नहीं क्यों लोग मुझे नहीं करते प्रवाहित नहीं कर देते किसी को दान।
रचनाकाल : 4 अप्रैल 2008 </poem>